Monday, August 22, 2011

मप्र पर भारी बालाघाट जिला - टीकाकरण में बालाघाट ने सभी को पीछे छोड़ा

75 फीसदी बच्चों को लगाए जाते हैं सभी टीके

- पंकज शुक्ला

भोपाल। नक्सलियों के चलते प्रदेश सरकार के लिए 'सिरदर्द" बना बालाघाट जिला बच्चों के टीकाकरण के मामले में पूरे प्रदेश पर भारी पड़ रहा है। लाख प्रयत्नों के बाद भी प्रदेश में पूर्ण टीकाकरण की दर 43 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पा रही है जबकि आदिवासी जिले बालाघाट में पूर्ण टीकाकरण की दर 75 प्रतिशत है। खसरे का टीका लगाने में जहाँ अन्य जिले पिछड़ रहे हैं, वहीं बालाघाट में 90 फीसदी बच्चों को यह टीका लगाया जा चुका है। पिछड़े और नक्सल समस्या वाले जिले की पहचान पा चुके बालाघाट का यह नया परिचय चौंका रहा है। देश भर के विशेषज्ञ और टीकाकरण हिमायती इस सफलता के कारण खोजने में लगे हैं ताकि बालाघाट को 'फार्मूला" बना कर बच्चों की सेहत सुध्ाारी जा सके।

बच्चों की असमय होने वाली मौत को रोकने के लिए मध्यप्रदेश में पूर्ण टीकाकरण बड़ी चुनौती बना हुआ है। देश में हर साल एक लाख 80 हजार बच्चे केवल खसरे की बीमारी की वजह से मर जाते हैं। इन मौतों में मप्र का हिस्सा आठ से 10 फीसदी है। टीकाकरण खसरे से बचाव का कारगर उपाय हो सकता है। खसरे से बचाव के शिशु को 9 माह की उम्र में टीका लगाया जाता है। खसरा श्वसन तंत्र का एक घातक व बेहद संक्रामक रोग है। जिन शिशुओं को खसरा का संक्रमण होता हैं उनमें से बहुत से शिशुओं को सीने का संक्रमण, दौरे व दिमागी क्षति सरीखे कई गंभीर नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।  मप्र में खसरा टीकाकरण की बात करें तो कुल 57.7 प्रतिशत बच्चों को ही खसरा से बचाव के लिए जरूरी टीके लग पाए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण किए हुए बच्चे महज 53.6 प्रतिशत ही हैं।

पूर्ण टीकाकरण की स्थिति कुछ ओर हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार 2007-08 में 62.5 प्रतिशत, 2007-08 में 62.5 प्रतिशत तथा 2008-09 में 63.6 प्रतिशत बच्चों को बाल टीकाकरण योजना के तहत पूरी तरह रोग प्रतिरोधी टीकाकरण किया गया। जनसंख्या शोध केंद्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने मध्यप्रदेश के बच्चों के टीकाकरण के संदर्भ में एक शोध रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार 12 से 36 माह की आयु के बच्चों में से केवल 47 फीसदी बच्चों का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। तब के 45 जिलोें में से 3 जिलों में 75-100 फीसदी, 21 जिलों में 50-74 फीसदी, 17 में 25-49 फीसदी और 4 जिलों में 0-24 फीसदी तक टीकाकरण हुआ है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा करवाए जाने वाले सर्वे डीएलएचएस-3 (डिस्ट्रीक लेवल हाऊस होल्ड सर्वे-3) के मुताबिक बालाघाट में 75  फीसदी बच्चों का पूर्ण टीकाकरण हुआ है। यहाँ जन्में 90 फीसदी बच्चों को खसरे का टीका लगाया गया। जबकि झाबुआ, अलीराजपुर, शिवपुरी, टीकमगढ़, बड़वानी जैसे जिलों में 30 फीसदी बच्चों को भी खसरे का टीका नहीं  लग पाता है। पन्नाा में केवल 11 फीसदी बच्चे ही टीकाकरण का लाभ उठा पाए हैं।

तमाम विपरित परिस्थितियों के बाद भी बालाघाट जिले का यह प्रदर्शन पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य पाने की उम्मीद जगाता है। बालाघाट में इस लक्ष्य को पाने के लिए बहुत बड़ा काम न कर छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दे कर बड़ा लक्ष्य पाया गया है। मसलन, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम के बाद आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दे कर पूरी तरह टीकाकरण के लिए तैयार किया गया। उनकी समस्या सुनी गई और उनका निराकरण हुआ। दूसरा, हर स्तर पर निगरानी को कड़ा किया गया। अंतिम चरण में गाँवों में घर-घर जा कर बच्चों को खोज कर टीके लगाए गए। यह कैच अप राउंड कारगर साबित हुआ। जिला टीकाकरण अध्ािकारी डॉ. राकेश पंड्या कहते हैं कि इन तीन स्तरों पर की गई कोशिशों ने हमारा हौंसला बढ़ाया।

बस्ती-बस्ती की माइक्रो प्लानिंग, बच्चे-बच्चे पर नजर

सम्पूर्ण टीकाकरण की ओर कदम बढ़ाते हुए यहाँ कुछ ऐसा नहीं किया गया जो अन्य जिलों में न किया जा सकता हो। जिले को यह उपलब्ध्ाि सामान्य काम को विशिष्ट तरीके से करने पर मिली है। यहाँ हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभा रहा है। बस्ती के अनुसार माइक्रो प्लानिंग की गई और बच्चे-बच्चे पर नजर रखी गई। इस तरह निगरानी का एक ऐसा तंत्र बना जो हर कमी को पकड़ने में सक्षम है।

महिला एवं बाल विकास विभाग अध्ािकारी नीलिमा तिवारी के मुताबिक टीकाकरण का लक्ष्य हो या कुपोषण या बाल संजीवनी अभियान, हमने इसे अलग-अलग काम मानने की जगह आपसी सहयोग का प्रोजेक्ट बनाया। स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक-दूसरे की जानकारियों और सूचनाओं को साझा किया और उनका उपयोग करना शुरू किया। मसलन, आँगनवाड़ी केन्द्र में आने वाली महिलाओं से गाँव में गर्भवती महिला की जानकारी मिलने पर तुरंत आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम को बता दिया जाता है। वे अपने-अपने रजिस्टर में गर्भवती महिला का नाम-पता दर्ज कर लेते हैं। इसके बाद आँगनवाड़ी सहायिका, कार्यकर्ता, एएनएम और आशा की जिम्मेदारी है कि समय पर गर्भवती महिला की नियमित जाँच, टीकाकरण, संस्थागत प्रसव और बच्चों के टीकाकरण का ध्यान रखे।

चूके टोलो में हल्ला बोल बालाघाट पहाड़ी जिला है और यहाँ के दूरस्थ इलाकों में पहुँचना टेढ़ खीर है। शहर से सटे इलाकों में तो टीकाकरण आसान है लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों से बच्चों को टीकारण के लिए नहीं लाया जाता। बालाघाट में बिरसा, बैहयर, परसवाड़ा, लांजी तथा लामटा के छह गाँव ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सहज आवाजाही नहीं हो सकती। जिला टीकाकरण अध्ािकारी डॉ राकेश पंड्या बताते हैं कि दूरस्थ क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए खास मुहिम चलाई जाती है। यह मुहिम उन माह में होती है जब पलायन कर गए लोग अपने घर आते है। मसलन, होली, फसल कटाई और फसल बुआई के समय। इस दौरान पहले दिन स्थानीय व्यक्ति  से मुनादी करवा कर सूचना दी जाती है। अगले दिन 2 या 3 गाड़ियों में सात-सात कर्मचारियों का दल एक-एक टोले में पहुँचता है। वहाँ घर-घर जा कर गर्भवती महिलाओं की जानकारी लेते हैं, उन्हें टिटनेस का टीका लगाती है और बच्चे के जन्म का आकलन कर आशा कार्यकर्ता या आँगनवाड़ी सहायिका को संस्थागत प्रसव के लिए तैनात कर दिया जाता है। घर-घर जा कर यह पूछ भी लिया जाता है कि किसके घर में बच्चा है। इसतरह सूचना जुटाई जाती है। यह कैचअप राउंड सालभर में चार बार किया जाता है। इस अभियान के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से अलग बजट आवंटित है।

'टीका लगाना था इसलिए नहीं गई खेत" मगरदर्रा की आँगनवाड़ी में अपनी तीन माह की बेटी को टीका लगवाने लाई कौशल्या अनुसूचित जाति वर्ग है। गरीब परिवार की बहू कौशल्या कमाई के लिए खेत पर काम करने जाती है। इनदिनों ध्ाान की कटाई का काम चल रहा है करीब सौ रूपए रोज कमाने वाली कौशल्या अपने टोले की एक और महिला के साथ टीका लगवाने आई। उनसे जब पूछा गया कि काम पर क्यों नहीं गईं तो वे कहती हैं कि बच्ची को टीका लगवाना ज्यादा जरूरी है। टीका लगवाना जरूरी है यह किसने कहाँ, पूछने पर वे आँगनवाड़ी सहायिका की ओर इशारा कर देती हैं।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता केके यादव कहतेे हैं कि बच्चा बीमार होता है तो लोग लेकर तुरंत आ जाते हैं। कुपोषण पर वे जिला मुख्यालय में पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) में भी भर्ती करते हैं। श्री यादव का कहा एनआरसी में भ्रमण के दौरान सच लगा। यहाँ 19 बच्चों को पोषण के लिए भर्ती करवाया गया था। ग्रामीणों की जागरूकता ही परिणाम था कि तुमड़ीटोला की आँगनवाड़ी में दोपहर तीन बजे तक लक्ष्य के सभी बच्चों को टीके लग चुके थे। केवल एक गर्भवती महिला का आना शेष था और सभी उसका इंतजार कर रहे थे। नहीं आई तो? इस पर आँगनवाड़ी सहायिका ने कहा कि वह तीसरी बार बुलाने जाएगी। जब कोई इतना पीछे पड़ जाए तो टीका लगवाने आना तो पड़ेगा ही।

 (नईदुनिया समूह के संस्करण 'संडे नईदुनिया" में प्रकाशित)

एक टीका - जीवन के नाम

- Ankita Mishra, L N Star

टीकाकरण बच्चों को रोगों से लड़ने की क्षमता तो प्रदान करता ही है, साथ ही ऐसी बीमारियों की चपेट में आने से भी बचाता है, जो हवा और पानी के संपर्क मात्र से फैलती हैं। जन्म से लेकर किशोरावस्था तक लगने वाले प्रमुख टीके उसकी जिंदगी को खुशहाल बनाने और स्वस्थ्य जीवन देने का काम करते हैं। इसलिए नियमित और समयानुसार टीकाकरण जरूर कराएं।

तपेदिक टी.बी. - तपेदिक यानि टी.बी. एक जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूली) के संक्रमण के कारण होता है। यह अत्यंत संक्रामक रोग है जिसमें मुख्यत: फेफडे प्रभावित होते हैं। इसका असर आंतों, हड्डियों, जोड़ों, लसीका ग्रंथियों, ऊतकों और शरीर के तंतुओं पर भी पड़ सकता है। टी.बी. की स्थिति यदि गंभीर हो जाए तो मौत भी हो सकती है।

पहचान - बच्चा बीमार रहे। उसे 2 सप्ताह से अधिक बुखार या खांसी हो, वजन कम होने लगे। शरीर में सुस्ती रहे। इन सभी लक्षणों को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। चिकित्सक से परामर्श लें।

फैलाव -फेफडे सम्बंधी टी.बी. से पीड़ित व्यक्ति की खांसी या छींक के कणों के संपर्क में आने से संक्रमण हो सकता है। इसका अन्य प्रकार  (बोवाईन टी.बी.) जो पशुओं का कच्चा दूध पीने से होता है।

रोकथाम- 
यदि बच्चे को बैसिलस कालमेट ग्यूरिन (बीसीजी) का टीका बचपन में लगवाया है तो टी. बी. के गंभीर रूपों की रोकथाम कर सकता है।

पोलियो

पोलियो एक वायरल संक्रमण है जिससे नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और गंभीर बीमारियां, जैसे- लकवा और मौत तक हो सकती है। सघन पल्स पोलियो अभियान आयोजित होने के  कारण वर्ष 1999 के बाद देश में पोलियो से पीड़ित बच्चों की संख्या में अच्छी खासी गिरावट आई है। राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण अभियान से सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।

पहचान - 15 वर्ष की आयु तक के बच्चों में शरीर के किसी भी भाग में अचानक कमजोरी और लकवे के लक्षण या किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति में जिसमें पोलियो की संभावना हो सकती है। नियमित टीकाकरण कराएं।

फैलाव -  संक्रमण मल के संपर्क में आने से फैलता है। सफाई में कमी, अप्रत्यक्ष रूप से दूषित पानी, दूध या भोजन के कारण भी होता है। 80 प्रतिशत से भी अधिक पोलियो के मामले 3 साल से कम उम्र के बच्चों में पाए जाते हंै।

रोकथाम - मुंह से पिलाई जाने वाली पोलियो वैक्सीन यानि ओ.पी.वी. ही खतरनाक बीमारी की रोकथाम का एकमात्र असरकारक तरीका है।

गल घोंटू
डिप्थीरिया यानि गल घोंटू एक जीवाणु (कोराइन बैक्टीरियम डिप्थीरिया) के संक्रमण से होने वाला रोग है। डिप्थीरिया एक ऐसा संक्रामक रोग है जो टॉन्सिल व श्वांसनली को संक्रमित करता है जिससे एक ऐसी झिल्ली बन जाती है जो सांस लेने में रुकावट पैदा करती है और जिससे मौत भी हो सकती है।

पहचान - गले में खराश रहती है। इतना ही नहीं शरीर में हल्का बुखार भी रहता है। इसके अलावा गले में स्लेटी रंग का धब्बा या धब्बे बन जाते हैं।

फैलाव - इसके जीवाणु पीड़ित व्यक्ति के मुंह, नाक और गले में रहते हंै। यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से फैलता है।

रोकथाम - यदि टीका नहीं लगाया गया तो बच्चे को 14 साल तक की उम्र में इसका संक्रमण बार-बार हो सकता है।


काली खांसी
काली खांसी एक जीवाणु बोर्डेटेला परट्यूसिस के संक्रमण से होने वाला अति संवेदनशील संक्रामक रोग है जो तेजी से फैलता है। इसमें श्वांस प्रणाली प्रभावित होती है जिसके कारण बार-बार खांसी होने लगती है। कुछ गंभीर मामलों में तो इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की घुटन से मौत भी हो सकती है।

पहचान - उग्र खांसी आती है। दो हफ्ते के बाद इन पर भी गौर कर सकते हैं।  खांसी के दौरे, साथ में उल्टी, बड़े बच्चों में खांसी व हूहू की आवाज आती है।

फैलाव - इसके जीवाणु रोगी के मुंह और नाक में मौजूद रहते हैं।  आमतौर पर खांसी और छींक के जरिए वे हवा में फैल जाते हैं। बच्चे इसकी चपेट में जल्दी आ जाते हैं।

रोकथाम - डी.पी.टी. का टीका ही काली खांसी का उपाय है। बच्चे का 6, 10, 14 सप्ताह में टीकाकरण कराएं।

हेपेटाइटिस-बी
हेपेटाइटिस-बी अत्यंत संक्रामक (एच.आई.वी.से 40-100 गुना ज्यादा संक्रामक) वायरल रोग है जिससे पीलिया व अचानक तेजी से बढ़ने वाला लीवर रोग, सिरोसिस (सूत्रण रोग) और लीवर कैंसर भी हो सकता है।

पहचान - प्रमुख लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मिचली, उल्टी, पीलिया (आंखें पीली) व मल का रंग राख जैसा होना शामिल है। अंतिम रूप से पुष्टि प्रयोगशाला जांच में चलती है।

फैलाव - संक्रमित रक्त या शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों के जरिए फैलता है।  बच्चे के जन्म के समय असुरक्षित यौन संबंध, बगैर स्टरलाइज किए ही सुइयों के इस्तेमाल करने से फैलता है।

रोकथाम -
टीकाकरण नियमावली के अनुसार, हेपेटाइटिस-बी के द्वारा रोग के संक्रमण और जटिलता की रोकथाम संभव है। शिशु का 6, 10, 14 टीकाकरण कराएं।

टेटनस
यह जीवाणु जनित रोग है। नवजात में होने वाली टेटनस व्यस्कों की टेटनस बिल्कुल अलग है। नियाटेल टेटनस से यानि नवजात शिशुओं में होने वाले टेटनस से प्रभावित बच्चे जीवन के दो दिनों में सामान्य रूप से स्तनपान करते हैं और रोते हैं। इसकी पहचान तुरंत करें तो ठीक रहता है। 

पहचान - 3-28 दिनों के बीच शिशु को स्तनपान में दिक्कत होती है और इसके बाद  गर्दन व शरीर अकड़ने लगता है और मांसपेशियां ऐंठने लगती हैं। ऐसे में देर न करें।

फैलाव -
गंदगी, आंतों व पशुओं के मल में रहता है। कटी-फटी त्वचा के जरिए शरीर में पहुंचता है। नवजात में कटी त्वचा, घाव या नाभिनाल से प्रवेश करता है।

रोकथाम -टीका ही असरदार तरीका है। इसका टीका शिशु को 1 से 4 सप्ताह के भीतर लगवा देना चाहिए। यही शिशु की जान बचा सकता है।


खसरा


विषाणु से होने वाला अत्यंत संक्रामक रोग है। यह विषाणÞु रोगी व्यक्ति के नाक, मुंह या गले में पाया जाता है। संक्रमित को बुखार खांसी हो सकती है और पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं जिससे दस्त एवं निमोनिया जैसे माध्यमिक संक्रमणों के कारण मौत भी हो सकती   है।

पहचान - मेशा बुखार रहना। इसके साथ-साथ ही शरीर पर दाने निकल आना, खांसी या नाक से पानी बहना और आंखें लाल होना  प्रमुख लक्षणों में से एक हैं।

फैलाव - इसका विषाणु पीड़ित व्यक्तियों के द्वारा खांसी व छींक से हवा में फैलता है। इससे निकलने वाले कणों के माध्यम से संक्रमण फैलता है। शिशु को ऐसे व्यक्ति से दूर रखें।

रोकथाम - खसरे की रोकथाम के लिए सबसे असरकारक तरीका टीका है। बच्चे को टीकाकरण नियमानुसार 16-24 सप्ताह में लगवा लें।

जापानी एन्सीफैलाइटिस (जेई)
जापानी एन्सीफैलाइटिस भी अन्य प्राणघातक रोगों की तरह ही विषाणु जनित जानलेवा रोग है। यह भारत के कुछ राज्यों के किन्हीं निश्चित क्षेत्रों में पाया जाता है।

पहचान - इस रोग के दौरान प्रभावित को तेज बुखार के साथ-साथ मानसिक स्थिति में परिवर्तन (जैसे भ्रम,भटकाव या कोमा के रूप में), कंपन होने की स्थिति देखने को मिलती है।

फैलाव - इसका विषाणु आमतौर पर पक्षियों एवं घरेलू जानवरों, विशेषकर सुअर में रहता है। संक्रमित जानवरों को काटने वाले मच्छर जब बच्चों को काटते हैं तब उन बच्चों में यह रोग हो जाता है।

रोकथाम - इस रोग पर काबू पाने के लिए अधिक जोखिम वाले जिलों में 1-15 वर्ष तक के सभी बच्चों को लक्षित अभियानों के अन्तर्गत टीकाकरण किया जाता है। उसके बाद इस टीके को जिले के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। 1-2 वर्ष तक के बच्चों के लिए जापानी एन्सीफैलाइटिस की रोकथाम सम्बंधी एक खुराक उपलब्ध कराई गई है।


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फैक्ट फाइल
2009 में यूनिसेफ द्वारा कराए गए कवरेज इवोल्यूशन सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 12-23 माह के बच्चों की टीकाकरण की स्थिति को बताया गया है। नियमित टीकाकरण को लेकर यदि प्रत्येक राज्य की स्थिति देखें तो कुछ इस प्रकार है। नियमित टीकाकरण के मामले में, दिल्ली, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, पं. बंगाल, मेघालय, झारखंड, उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान और मणिपुर की स्थिति मप्र से अच्छी है।

राज्य         पूर्ण इम्यूनाइजेशन    आंशिक इम्यूनाइजेशन नो इम्यूनाइजेशन
गोवा                  89                                   8                 3
सिक्किम           85                                  12                3
पंजाब                84                                  15                1
केरल                82                                  17                1       
महाराष्ट्र            79                                  20                1
कर्नाटक            79                                   20.5            .5
तमिलनाडु         78                                   18                4
हिमांचल प्रदेश  5                                    24.77            .23
मिजोरम            73                                   19                 8
बिहार                49                                    35               16
मप्र                    42.9                                  50              7.1
उप्र                     40                                  42                18
अरुणाचल प्रदेश    8                                  40                32



- प्रतिदिन भारत में 5000 बच्चे पांच वर्ष की आयु के पहले ही दम तोड़ देते हैं।
- 12000 बच्चे प्रति वर्ष मीजल्स के कारण दम तोड़ देते हैं।
- अभी तक मध्य प्रदेश में 41 फीसदी बच्चों को ही नियमित टीकाकरण के दायरे में लाया जा
    सका है।
- 100 फीसदी टीकाकरण करना अभी भी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है।


 जागरुकता की कमी

आजादी के इतने सालों बाद भी नियमित टीकाकरण की स्थिति में कोई आश्चर्यजनक सुधार नहीं देखा गया है। स्थिति अभी भी जस की तस बनी हुई है। मप्र यूनिसेफ की हेड डॉ. तानिया गोल्डर बताती हैं कि देश में टीकाकरण की स्थिति 60 फीसदी है तो मप्र में 41 फीसदी है, जो चिंता का विषय है। इसे 100 फीसदी पर लाने के लिए सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को निजी तौर पर प्रयास तेज करने होंगे। लोगों की सहभागिता को बढ़ाना होगा। इसके लिए उनमें जागरुकता के स्तर को भी बढ़ाना होगा। तभी हर बच्चे का टीकाकरण हो सकेगा। देश में प्रत्येक वर्ष 2700 मिलियन बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाता है। मप्र की टीकाकरण स्थिति को लेकर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक मनोहर अगनानी का कहना है कि माइक्रोप्लान्स के जरिए स्थिति को काबू करने की कोशिश की जा रही है।

ये है स्थिति

सही समय पर टीकाकरण नहीं पाने के कारण सिर्फ मप्र में ही 12 हजार बच्चे सालाना मीजल्स के कारण काल कवलित हो जाते हैं। इसकी वजह से देश में 6 फीसदी बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। पूरे देश में मीजल्स के टीकाकरण की स्थिति 74.1 प्रतिशत है।  इतना ही नहीं 50.6 फीसदी बच्चों को ही डीपीटी-3 वैक्सीन की खुराक मिल पाती है। पूरे देश में 61.0 प्रतिशत बच्चों को ही टीकाकरण की पूरी खुराक मिल पाती है। प्रदेश में ऐसे बच्चों की संख्या महज 42.9 प्रतिशत है, जिन्हें टीकों की फुल डोज मिल पाती है। डीटीपी बूस्टर डोस प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या मात्र 29.8 फीसदी ही है। वहीं विटामिन ए की पहली डोज लेने   वाले बच्चों की संख्या 45.1 फीसदी है। इसका प्रमुख कारण लोगों में जागरुकता का     अभाव है।

Sunday, August 21, 2011

Project sensitises scribes in MP

The Pioneer, Aug 6, 2011 : The pilot project of the Indira Gandhi National Open University (IGNOU) with the UNICEF which was launched a month ago has reached its second stage to help increase media discourse on routine immunisation to media persons in Jabalpur.

A 20-member team comprising national, State and district level media visited Jabalpur in Madhya Pradesh.

The visit, part of second phase of the UNICEF and IGNOU partnership, raised awareness among media on the low rate of routine immunisation and high infant mortality in MP. At present only 40 per cent children get immunised which contributes to the high infant mortality in the State.

The journalists got first-hand experience about the micro-planning involved in handling cold chain equipment that maintains vaccines at right temperatures. “The vaccine stores make use of generators in case of power failure to protect the vaccines stored,” said Dr Gagan Gupta, Health Specialist, UNICEF, MP, who was accompanying the media team.

The media persons were also taught small drills for checking the expiry dates of the vaccines through the vaccine vial monitor.

“As a media person, we can share such simple yet effective knowledge with parents and especially mothers,” said Shivani, one of the participants.

स्वस्थ जीवन की बुनियाद स्तनपान

- राकेश कुमार मालवीय

स्तनपान और टीकाकरण नीरस विषय हैं। समाज के लिए भी और मीडिया के लिए भी। आम लोगों की बातचीत में भी यह मुद्दे कभी-कभार ही शामिल हो पाते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश  में बच्चों के स्वास्थ्य के हिला देने वाले आंकड़ों पर गौर करें तो इन दोनों ही महत्वपूर्ण पक्षों पर गंभीरता से काम करने की जरूरत दिखाई देती है, सरकार के स्तर पर भी और समाज के स्तर पर भी। स्तनपान मध्यप्रदेश के साठ प्रतिशत  कुपोषित बच्चों की तंदुरूस्ती में बुनियादी रूप से महती भूमिका अदा कर सकता है, लेकिन यह उतना ही चिंताजनक है कि प्रदेश  में 15  बच्चों को ही जन्म के एक घंटे में यह नसीब होता है, और केवल फीसदी 31 प्रतिशत  बच्चे ही छह माह तक केवल मां का दूध ले पाते हैं। टीकाकरण के बारे में भी कमोबेष ऐसी ही स्थिति है। मध्यप्रदेश में टीकाकरण तमाम कोशीशो  के बावजूद 42 प्रतिशत  तक ही पहुंच पाया है। प्रदेश  में 28 प्रतिशत  अभिभावकों को टीके की जरूरत ही महसूस नहीं होती। यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि देश  में हर दिन 5 हजार बच्चों की मौत हो जाती है, और इनमें से 65 प्रतिशत  मौतें ऐसी हैं जिन्हें रोका जा सकता है। यानी टीकाकरण बाल और शिशु मृत्यु दर को कम करने में प्रभावी साबित हो सकता है, लेकिन जिस समाज के 28 प्रतिशत लोगों को इसकी जरूरत ही महसूस नहीं होती और 26 प्रतिशत  लोग इसके बारे में जानते ही नहीं हैं, वहां बच्चों की मौतें रोक पाना निश्चित ही एक बड़ी चुनौती है।  


राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण की तीसरी रपट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में लगभग पांच प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग चार प्रतिशत बच्चे स्तनपान से वंचित हैं। जनजागरूकता की जब बात आती है तो अक्सर  इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों को दोषी करार दे दिया जाता है। दरअसल ऐसा है नहीं। प्रसव के आधा घंटे के दौरान स्तनपान के आंकड़े को देखें तो जहां तीस प्रतिषत बच्चों को शहरी क्षेत्र में मां का दूध मिला था वहीं ग्रामीण क्षेत्र में यह शहरी क्षेत्र की तुलना में केवल आठ प्रतिशत ही कम था। यह बहुत बड़ा अंतर नहीं है। विषेषज्ञों के मुताबिक प्रसव के एक घंटे के बाद का समय बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और इस दौरान का स्तनपान एक शिशु के पूरे जीवन के लिए स्वास्थ्य के नजरिए से एक मजबूत बुनियाद रखता है। मध्यप्रदेश की स्थिति तो इस मामले में और भी खराब है।

सिक्के का एक पहलू यह भी है कि मध्यप्रदेश में सुरक्षित मातृत्व की कोशिशों के तहत संस्थागत प्रसव को बढ़ाकर लगभग 82 प्रतिशत  तक लाया गया है। सरकार के इन आंकड़ों पर भरोसा करें तो यह एक आमूलचूल परिवर्तन कहा जा सकता है। लेकिन संस्थागत प्रसव का दूसरा पक्ष यह भी है कि संस्थागत प्रसव के साथ ही सीजेरियन डिलीवरी में भी बड़ा इजाफा हुआ है। इस तरह के प्रसव में जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की संभावना नहीं होती। इस स्थिति में स्तनपान के आंकड़ों को बढ़ाना कैसे संभव है, यह भी एक चुनौती है। 

स्तनपान असल में केवल आहार का विषय ही नहीं है, बल्कि इससे कहीं आगे जाकर मातृत्व, बच्चों की परवरिष और सामाजिक चेतना से जुड़ा मसला भी है। लेकिन इस पूरे परिदृष्य में एक बात तो साफ नजर आती है कि स्तनपान और इससे जु़ड़ी प्रक्रियाओं, सामाजिक सोच, विचार और भ्रांतियों को अपने-अपने स्तर पर दूर करना होगा। लेकिन स्वास्थ्य के नजरिए से यह सवाल इतना आसान भी नहीं लगता। मध्यप्रदेष की मीमा में रहने वाली 56 प्रतिशत माएं खून की कमी का शिकार हैं, यानी किसी न किसी तरह से बच्चे को उचित मात्रा में दूध पिलाने में वे शारीरिक रूप से पूरी तरह सक्षम नहीं है। तब क्या यह तस्वीर एक व्यापक रणनीति के बिना बदलने वाली है।   

हमारी प्रवृत्ति हर चीज के लिए जिम्मेदार समूहों पर दोष मथ देने की होती है, लेकिन सामाजिक चेतना के बिना इन तस्वीरों को बदलना बेहद मुश्किल  भरा है। सुरक्षित मातृत्व के मामले में भी समाज का रवैया ठीक ऐसा ही है। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रसव प्रक्रियाओं को सुरक्षा के दायरे में लाने की कोशिशें  हुईं, कुछ प्रगति भी कर ली, लेकिन व्यावहारिक रूप से उन परिस्थितियों को नहीं समझा गया जो कि असल में सुरक्षा के नजरिए से बेहद जरूरी है। जन्म के तुरंत बाद शिशु  को गुड़ और शहद चटाने के रिवाजों से अब तक मुक्ति नहीं मिल पाई है। वहीं प्रसव के बाद दो-तीन दिन तक महिलाओं को उचित आहार ने देने जैसे बेतुके  रिवाज अब भी कायम है। अब सवाल यह उठता है कि संस्थागत प्रसव करवा भी दिया, लेकिन उनके दूसरे आयामों को समझे बिना निर्णायक परिणामों की अपेक्षा भी बेमानी है। 

टीकाकरण पर भी लोगों की राय दिलचस्प नजर आती है। कवरेज इवेल्यूषन सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जहां 28 प्रतिषत लोगों को इसकी जरूरत ही नहीं लगती और दूसरी ओर 26 फीसदी को जानकारी ही नहीं है। दस प्रतिषत को इस बात की जानकारी नहीं है कि टीकाकरण के लिए जाना कहां है। आठ प्रतिशत  लोगों को समय उचित नहीं लगता, और लगभग इतने ही टीके के साइड इफेक्ट से डरकर नहीं लगवाते हैं। 6 प्रतिशत लोगों के पास समय नहीं है और 1 प्रतिषत लोग रूपयों की कमी से ऐसा नहीं कर पाते। टीके बीमारियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसके लिए दोनों स्तर पर काम करने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि वह दूरस्थ अंचल तक टीकाकरण की सुविधाएं सुरक्षित रूप से पहुंचाए और उन 26 प्रतिशत लोगों तक भी इसका महत्व बताए जिन्हें इस बेहद महत्वपूर्ण विषय की जानकारी ही नहीं है। वहीं समाज को भी अपनी ओर से बच्चों के स्वास्थ्य के बेहतर स्वास्थ्य के लिए आगे आना  

मीजल्स बीमारी की रोकथाम में बड़वानी अव्वल

बच्चों को होने वाली मीजल्स बीमारी के टीकाकरण के क्षेत्र में बड़वानी जिले ने प्रथम स्थान पर आकर बता दिया है कि जनसहयोग एवं संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग और समर्पण की भावना से कार्य किया जाये तो मीजल्स से बच्चों की मौत होने की पीड़ा से मुक्ति पाई जा सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट अनुसार विश्व में मीजल्स से मरने वाले बच्चों में से 60 प्रतिशत बच्चे भारत के होते हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ष भारत में 60 हजार से एक लाख बच्चों की मौत इस बीमारी से होती है। यह संख्या किसी भी देश में मीजल्स से मरने वाले बच्चों की संख्या में सर्वाधिक है। मध्यप्रदेश में भी मीजल्स से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले जिलों में अलीराजपुर, बड़वानी, झाबुआ, शिवपुरी, टीकमगढ़ जिला सम्मिलित हैं। इस तथ्य के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन पांचों जिलों को अपने मीजल्स टीकाकरण के पायलट प्रोजेक्ट में सम्मिलित कर 6 से 31 दिसम्बर तक अभियान चलाया गया। अभियान में 9 माह से 10 वर्ष तक के शत-प्रतिशत बच्चों को टीकाकरण करवाने का चैलेंज जिला प्रशासन को सौंपा था।
बड़वानी जिले ने इस अभियान को जन आंदोलन का स्वरूप प्रदान करते हुए इस कार्य में स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों, महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले, स्कूलों के शिक्षकों, सभी विभागों के जिला अधिकारियों सहित लोकसभा, विधानसभा एवं त्रि-स्तरीय पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों, विभिन्न सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं, धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक संगठनों के पदाधिकारियों तथा मीडिया के बंधुओं का सहयोग लेकर जिले में दो लाख 93 हजार 533 बच्चों का मीजल्स टीकाकरण करने में सफलता प्राप्त की है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट अनुसार मध्यप्रदेश के पांच जिलों में संचालित इस मीजल्स टीकाकरण अभियान में बड़वानी जिले ने लक्ष्य के विरुद्ध 94.14 प्रतिशत उपलब्धि प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है। जबकि 80.29 प्रतिशत उपलब्धि प्राप्त कर शिवपुरी जिला अंतिम स्थान पर रहा है। भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि एवं बांग्लादेश के रहवासी डॉ. मीर्जानुर रहमान ने शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में भी बड़वानी जिले की इस उपलब्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
बड़वानी जिला प्रशासन ने जिले के नौनिहालों को बचाने हेतु संचालित इस अभियान में सीधा एवं प्रभावशाली सहयोग देने के लिये स्थानीय जन-प्रतिनिधियों सहित सभी का आभार मानते हुए विश्वास व्यक्त किया है कि अभियान से छूट गये 5.86 प्रतिशत बच्चों को भी मीजल्स का टीका लगाकर शत-प्रतिशत उपलब्धि प्राप्त करने में सभी इसी प्रकार अपना सहयोग प्रदान करेंगे।

प्राथमिकता में नौनिहालों का स्वास्थ्य

मध्यप्रदेश में टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए 2011 को टीकाकरण वर्षघोषित किया गया है, प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति को बता रहे हैं राजु कुमार.
मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर बहुत ही ज्यादा है. प्रदेश में टीकाकरण की कमी के कारण भी हजारों बच्चे असमय मौत का शिकार हो जाते हैं. ये बच्चे उन बीमारियों का शिकार हो जाते हैं, जिन्हें टीके के माध्यम से रोका जाना संभव है. सूचना एवं जागरूकता के अभाव में प्रदेश के आधे से ज्यादा बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं. टीकाकरण के दायरे को बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 को टीकाकरण वर्षघोषित किया है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक डॉ. मनोहर अगनानी कहते हैं, ‘‘टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं इसके लिए मूलभूत संसाधनों को उपलब्ध कराने का प्रयास इस साल किया जा रहा है.’’
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में टीकाकरण की स्थिति में सुधार देखने को मिलता है, पर उसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. 2002-04 में जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-2 में 30.4 फीसदी बच्चों का ही संपूर्ण टीकाकरण हो पाया था. यह 2007-08 में किए गए जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-3 में बढ़कर 36.2 फीसदी तक पहुंच गया. इस बीच लगभग पांच साल में 5.8 फीसदी ही टीकाकरण बढ़ पाया था. जबकि इसके महज एक साल बाद कव्हरेज इवैल्यूएशन सर्वे 2009 में प्रदेश में संपूर्ण टीकाकरण का स्तर 42.9 फीसदी पर पहुंच गया. यद्यपि यह राष्ट्रीय औसत 61 फीसदी से बहुत पीछे है, पर एक से दो साल के बीच स्थितियों में आई तेज सुधार से यह संभावना जगी है कि मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगने वाला है.
प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति में सुधार के लिए यूनीसेफ राज्य सरकार को लंबे समय से मदद कर रहा है. अब टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए यूनीसेफ ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) एवं मध्यप्रदेश सरकार के साथ मिलकर मीडिया की सहभागिताकार्यक्रम की शुरुआत भी की है. पिछले दिनों यूनीसेफ ने जबलपुर एवं भोपाल में इग्नू एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर पत्रकारों के लिए कार्यशाला का आयोजन भी किया. मध्यप्रदेश में यूनीसेफ की प्रतिनिधि डॉ. तान्या गोल्डनर कहती हैं, ‘‘टीकाकरण अभियान में मीडिया का सहयोग लेने से गांव के लोगों में टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और कार्यकर्ताओं लिए यह उत्साहवर्द्धन करेगा. टीकाकरण के प्रति जनमानस जागरूकता बहुत ही जरूरी है क्योंकि इससे जीवन की रक्षा होती है, खासकर ऐसे राज्य में जहां शिशु मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है. हमारा उद्देश्य एक-एक बच्चे तक पहुंचना है, इसके लिए मीडिया एवं पत्रकारों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.’’
यूनीसेफ के संचार अधिकारी अनिल गुलाटी कहते हैं, ‘‘हमारा उद्देश्य मीडिया के माध्यम से लोगों तक टीकाकरण के बारे में सही जानकारी को पहुंचाना है, जिससे कि लोगों के पूर्वाग्रह खत्म हो और वे नियमित टीकाकरण में अपने बच्चों को लेकर आएं. इसके साथ ही जहां अच्छे प्रयास हुए हैं, तो उनकी प्रक्रिया मीडिया में आए, जिससे कि अन्य जगहों के स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रेरणा लेकर टीकाकरण के दायरे को बढ़ा सकें.’’ टीकाकरण से तपेदिक, पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस-बी, खसरा एवं जापानी एंसीफैलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों से बच्चों की रक्षा होती है. शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर के आंकड़ों में कमी लाने के लिए इन बीमारियों से बचाव बहुत ही महत्वपूर्ण है.
प्रदेश में अभी भी सिर्फ 12 जिले हैं, जहां 50 फीसदी से ज्यादा संपूर्ण टीकाकरण हो पाया है. 5 जिलों में 40 से 50 फीसदी, 15 जिलों में 30 से 40 फीसदी एवं 18 जिलों में 30 फीसदी से भी कम टीकाकरण हुआ है. बालाघाट जिले में 90 फीसदी से भी ज्यादा टीकाकरण हुआ है. एक आदिवासी बहुल एवं दुर्गम इलाके वाले जिले में टीकाकरण की इस सफलता ने देश के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और उसे मॉडल मानते हुए उसी तरह के प्रयास अन्य जिलों में किए जाने की सिफारिश कर रहे हैं.

An uphill task for MP

The Hindu, byline - Vijetha S.N

Vaccines against deadly diseases like polio, tuberculosis and hepatitis B have to be stored, transported and administered with abundant caution or else the results can be disastrous, as was demonstrated to a group of journalists this past week during a field trip to villages around Jabalpur in Madhya Pradesh. The trip was organised by the UNICEF in partnership with the Indira Gandhi National Open University.
Madhya Pradesh has been facing the uphill task of trying to achieve full immunisation with regard to its migrant tribal and rural population. “Data for the State shows it is not up to the mark and that there is lack of awareness, lack of education and lot of misconception regarding vaccination,” said UNICEF communication specialist Anil Gulati.

The National Rural Health Mission funds the vaccine process, with the UNICEF providing all the technical help. The vaccine is administered at the village health centres, called sub-centres. In Darai village, a few km from Jabalpur, the anganwadi doubles up as health centre to service its 1,100 population.

The anganwadi, the Accredited Social Health Activist (ASHA) and the Auxiliary Nurse-Midwife (ANM) workers under the NRHM scheme are directly responsible for the actual administration of the vaccine. The cycle of the vaccination process starts with the ASHA worker. It is the ASHA worker's job to mobilise villagers and convince them to get vaccinated, which is not an easy job.

“There was this eight-month-old child suffering from malnutrition and the mother was not allowing us to vaccinate the child. I pestered her and stood outside her house for almost a month before the child was finally brought in…. I feel the child is alive today only because of me” said ASHA worker Sulochana, adding she does not get a salary but incentives whenever she manages to convince mothers to bring their children for immunisation or when she convinces an expectant mother to opt for institutional delivery.
In the next step, the anganwadi worker makes arrangements for the process and finally the ANM worker administers the vaccine . The vaccines have to be handled with extreme care, as they are extremely sensitive to slight changes in temperature, some being averse to heat and some to cold. There are special temperature-equipped storage and transportation facilities for both types of vaccines.

“Even though wrong administration of vaccine cannot result in death, it has to be administered within four hours of removal from storage or else the results could be deadly,” said District Immunisation Officer Satish Upadhya.

The responsibility, in a way rests on the ANM worker. “I have been trained especially to administer all vaccines and I take care to do a quality check on each and every vaccine, one mistake and the entire village will stop getting their children vaccinated,” said Lahera, who is the ANM for five villages.
Preventable disease is still the main reason for high infant mortality rates, despite efforts to provide vaccines against them, mainly because of unwilling parents due to misconceptions arising out of adverse reactions like fever and swelling immediately after the vaccine is administered.

A vaccine is not administered to the public unless it has been tested for years and it is continuously monitored for safety and effectiveness. However, every human body is different and a rare reaction following vaccines may occur but it is the only way in which to fight against death and morbidity due to disease.

According to the Census, infant mortality rate, considered to be a significant indicator of the overall health status of the country, has been on a steady decline from 129 per 1,000 live births in 1971 to 58 in 2005.

Although the country is far from achieving the legacy of the small pox eradication programme, the sustained campaign by the Government to provide vaccination against these pestilential and epidemic diseases is partially responsible for this decline.

इग्नू-यूनिसेफ ने मध्य प्रदेश के पत्रकारों को टीकाकरण के बारे संवेदनशील बनाया

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से जमीनी स्तर के मीडिया पेशेवरों को रूटीन टीकाकरण के बारे में शिक्षित करने के लिए एक महीने पहले शुरू की गई अनूठी मुहिम दूसरे चरण में पहुंच गई है। दूसरे चरण में जबलपुर को शामिल किया गया है।
 राष्ट्रीय, प्रांतीय और जिला स्तर के बीस सदस्यों की एक मीडिया टीम मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर पहुंची। यूनिसेफ-इग्नू गठजोड़ के दूसरे चरण के अंतर्गत इस दौरे ने मीडियाकर्मियों के बीच रूटीन टीकाकरण की निम्न दर एवं मध्य प्रदेश में उच्च शिशु मृत्यु दर के बारे में जागरूकता बढ़ाई। वर्तमान में सिर्फ 40 फीसदी बच्चों को ही टीके लग पाते हैं, इसलिए राज्य में शिशु मृत्यु दर उच्च है।
आदर्श तापमान पर टीकों को संरक्षित करने वाले कोल्ड चेन उपकरणों के इस्तेमाल में बारीक योजना के बारे में पत्रकारों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया गया। मीडिया टीम का साथ दे रहे यूनिसेफ व मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा. गगन गुप्ता ने कहा, ‘‘ संग्रहित टीकों के संरक्षण के लिए वैक्सिन स्टोर बिजली गुल होने की स्थिति में जेनरेटरों का इस्तेमाल करते हैं।’’

मीडियाकर्मियों को वैक्सिन वायल मॉनिटर के जरिए टीकों के एक्सपायरी डेट की जांच की विधि भी बताई गई।
प्रतिभागियों में से एक शिवानी ने कहा, ‘‘बतौर मीडियाकर्मी हम इस साधारण, लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी को अपने माता-पिता, खासकर मां, के साथ बांट सकेंगे।’’

सुदूर कुंडम प्रखंड से मोबाइल के जरिए स्थानीय न्यूज का प्रसार करने वाले सरोज परास्ते ने जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर सराई गांव की अपनी यात्रा को ज्ञानवर्द्धक करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे गांव के मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) हमसे मिलते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि मां और बच्चे टीकाकरण के लिए महीने के अंतिम मंगलवार को आंगनवाड़ी केंद्र में आयें।’’
दिल्ली, भोपार और जबलपुर के आठ मीडिया पेशेवरों ने निम्न रूटीन टीकाकरण पर विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए विचारों का आदान-प्रदान किया। इस भागीदारी के तहत इग्नू रणनीतिक एवं अंतःक्रियात्मक कार्यशालाओं में राष्ट्रीय, प्रांतीय और जिला स्तरीय मीडिया तक पहुंचने के लिए अपने मजबूत विडियो कांफ्रेंस नेटवर्क का इस्तेमाल करता है।

मध्य प्रदेश के लिए यूनिसेफ फील्ड ऑफिस की प्रमुख तानिया गोल्डनर ने बताया, ‘‘हर रोज़ भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 5000 बच्चों की मौत होती है। इनमें से ज्यादातर मौतों को रोका जा सकता है। कई राज्यों में टीका से नियंत्रित होने वाली बीमारियां बच्चों की मौत, विकलांगता की प्रमुख वजह हैं।’’ ऐसे में टीकाकरण के महत्व को बताकर मीडिया लोगों को जागरूक बना सकता है और ऐसी मौतों को टाल सकता है।

पत्रकारिता एवं नव माध्यम अध्ययन विद्यापीठ के निदेशक एस.एन सिंह ने कहा, ‘‘हम इग्नू के ज्ञानवाणी एवं ज्ञानदर्शन टीवी चैनलों के माध्यम से रूटीन टीकाकरण के विशेष कार्यक्रमों के जरिए मीडिया एवं सुदूर क्षेत्रों के अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सकते हैं।’’

जबलपुर में इन पत्रकारों के दौरे की शुरुआत नवजात शिशुओं की मौत की रोकथाम के लिए एनआरएचएम और यूनिसेफ द्वारा स्थापित अत्याधुनिक नवजात शिशु विशेष देखभाल इकाइयों से हुई। आशा एवं एएनएम (आग्जिलियरी नर्स मिडवाइव्स) सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत सेवा उपलब्धता के मामले में अंतिम चरण में संपर्क सूत्र हैं।

इस दौरे का समापन लेडी एल्गिन हॉस्पिटल में स्पेशल केयर न्यूबॉर्न यूनिट (एससीएनयू) के दौरे से हुआ। यहां नवजात शिशुओं को बीमारियों से बचने के लिए विशेष चिकित्सकीय देखभाल सुविधा प्रदान की जाती है। इन इकाइयों में नवजात शिशुओं को जन्म के बाद लगने वाले प्रथम टीके (बीसीजी, ओपीवी और हेपेटाइटिस-बी) दिए जाते हैं।

डा. गगन गुप्ता ने कहा, ‘‘वर्तमान में हमारे पास 28 एससीएनयू हैं, जबकि सभी पचास जिलों के लिए मंजूरी मिल गई है। यह राज्य में नवजात शिशुओं की मौत रोकने की दिशा में ठोस कदम है।’’

यूनिसेफ पूरे राज्य में एससीएनयू सुविधाओं का स्तर सुधारने के लिए मध्य प्रदेश सरकार के साथ काम कर रहा है।

वैक्सीन के तापमान पर है वायरलेस सिस्टम की नजर .

भोपाल, 29 जून। टीकाकरण के लिए प्रयुक्त होने वाले वैक्सीन को निर्धारित तापमान पर सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती है। अभी तक इसके लिए तापमान पर सीधी नजर रखनी पड़ती थी, लेकिन भोपाल में वायरलेस सिस्टम के जरिए तापमान को नियंत्रित किया जाने लगा है। मध्य प्रदेश देश उन राज्यों में से है, जहां वैक्सीन के तापमान को नियंत्रित करने के लिए वायरलेस सिस्टम की मदद ली जा रही है। सेहतमंद बचपन के लिए बच्चे को जन्म से दो साल की उम्र के बीच छह टीके लगाए जाते हैं, ताकि खसरा, टीबी, पोलियो सहित अन्य बीमारियां असर न डाल सकें। टीकाकरण में प्रयुक्त होने वाली दवा (वैक्सीन) को निर्धारित तापमान पर रखा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि निर्धारित तापमान पर न रखे जाने से वैक्सीन बेअसर हो जाती है। इतना ही नहीं, उसका बच्चे पर प्रतिकूल असर तक पड़ सकता है। वैक्सीन को जिस फ्रीजर में रखा जाता है, उस पर अभी तक सीधे व्यक्ति (मैनुअली) नजर रखता था, परंतु भोपाल के किलोल पार्क स्थित वैक्सीन स्टोर में वायरलेस सिस्टम के जरिए नजर रखी जा रही है। प्रदेश कोल्ड चेन के प्रभारी डा. विपिन श्रीवास्तव ने बताया है कि मुम्बई की एक कम्पनी द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर की बदौलत तापमान पर आसानी से नजर रखी जा रही है। बच्चों के लिए कार्य करने वाली संस्था यूनिसेफ व इंदिरा गांधी मुक्त विश्वद्यालय द्वारा नियमित टीकाकरण पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत मंगलवार को मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए अपनाई गई नई तकनीक का जायजा लिया। श्रीवास्तव ने को बताया कि वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए इलेक्ट्रॉनिक लॉगर काफी मददगार साबित हो रहा है। वह बताते हैं कि कहीं भी रहकर कंप्यूटर पर देखकर फ्रीजर के तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए इंटरनेट कनेक्शन होना जरुरी होता है। उन्होंने बताया कि आगामी समय में प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी इसी तकनीक के जरिए वैक्सीन के तापमान पर नजर रखी जाएगी। ऐसा हो जाने पर कही भी रहते हुए फ्रीजर के तापमान को नियंत्रित किया जा सकेगा। उन्होंने बताया है कि देश में मुम्बई के अलावा राजस्थान में इस तकनीक के जरिए वैक्सीन को रखने वाले फ्रीजर के तापमान को नियंत्रित किया जाता है। अब मध्य प्रदेश ऐसा राज्य हो गया है जहां इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। मीडिया के दल ने जेपी अस्पताल में टीकाकरण को देखा, साथ ही मिसरौद के बगली गांव में चल रहे टीकाकरण में लगी आशा कार्यकर्ता व एएनएम से भी चर्चा की तथा टीकाकरण में आने वाली परेशानियों को जाना।

यूनिसेफ, इग्नू का संयुक्त टीकाकरण अभियान

भोपाल। टीकाकरण के जरिए बच्चों को बीमारी से बचाकर स्वस्थ भारत का निर्माण सम्भव है, मगर तमाम कोशिशों के बाद भी टीकाकरण कार्यक्रम अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सका है। टीकाकरण को जनांदोलन का रूप देने के लिए बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनिसेफ व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने संयुक्त मुहिम शुरू की है।  यूनिसेफ व इग्नू ने दिल्ली सहित मध्य प्रदेश के क्षेत्रीय केंद्रों भोपाल व जबलपुर को वीडियो कांफ्रेंसिंग से जोड़कर नियमित टीकाकरण एवं समावेशी विकास पर राष्ट्रीय मीडिया परिचर्चा का आयेाजन किया है। इस दो दिवसीय परिचर्चा की शुरुआत सोमवार को हुई। तीनों स्थानो पर मौजूद दोनों ओयाजक संगठनों के अलावा मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने माना कि नियमित टीकाकरण के प्रति जनजागृति आवश्यक है और यह तभी सम्भव है, जब क्षेत्रीय मडिया का साथ हो।
 
भोपाल में यूनिसेफ की प्रदेश इकाई प्रमुख तान्या गोल्डनार ने कहा है कि भारत में प्रतिदिन पांच हजार बच्चों की मौत होती है। वहीं प्रदेश में हर साल खसरे से 12 हजार बच्चों की मौत होती है। इन मौतों को टीकाकरण से रोका जा सकता है। इसके लिए बच्चों के अभिभावकों मे जागरूकता आवश्यक है। जनजागृति लाने में मीडिया अहम भूमिका निभा सकता है।  इग्नू के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. के.एस. तिवारी ने माना कि नियमित टीकाकरण के जरिए बचपन को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि टीकाकरण को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को खत्म कर जागृति लाई जाए। इसके लिए इग्नू व यूनिसेफ मिलकर बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के निदेशक डॉ. मनोहर अगनानी ने बताया कि मध्य प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति में और सुधार लाने की जरुरत है, क्योंकि देश में टीकाकरण 61 प्रतिशत है वहीं यहां सिर्फ 42 फीसदी बच्चों का ही नियमित टीकाकरण हो पाता है। इसके अलावा 54 प्रतिशत बच्चों को एक या दो टीके ही लग पाते हैं, वहीं पांच फीसदी बच्चों को कोई टीका नहीं लग पाता।  भोपाल व जबलपुर स्थित इग्नू के क्षेत्रीय कार्यालय के अलावा दिल्ली में मौजूद विशेषज्ञों ने टीकाकरण अभियान में मीडिया तथा खासकर क्षेत्रीय मीडिया की भूमिका पर खुलकर राय रखी।

यूनिसेफ, इग्नू का संयुक्त टीकाकरण अभियान

भोपाल। टीकाकरण के जरिए बच्चों को बीमारी से बचाकर स्वस्थ भारत का निर्माण सम्भव है, मगर तमाम कोशिशों के बाद भी टीकाकरण कार्यक्रम अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सका है। टीकाकरण को जनांदोलन का रूप देने के लिए बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनिसेफ व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने संयुक्त मुहिम शुरू की है।

यूनिसेफ व इग्नू ने दिल्ली सहित मध्य प्रदेश के क्षेत्रीय केंद्रों भोपाल व जबलपुर को वीडियो कांफ्रेंसिंग से जोड़कर नियमित टीकाकरण एवं समावेशी विकास पर राष्ट्रीय मीडिया परिचर्चा का आयेाजन किया है। इस दो दिवसीय परिचर्चा की शुरुआत सोमवार को हुई। तीनों स्थानो पर मौजूद दोनों ओयाजक संगठनों के अलावा मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने माना कि नियमित टीकाकरण के प्रति जनजागृति आवश्यक है और यह तभी सम्भव है, जब क्षेत्रीय मडिया का साथ हो।

भोपाल में यूनिसेफ की प्रदेश इकाई प्रमुख तान्या गोल्डनार ने कहा है कि भारत में प्रतिदिन पांच हजार बच्चों की मौत होती है। वहीं प्रदेश में हर साल खसरे से 12 हजार बच्चों की मौत होती है। इन मौतों को टीकाकरण से रोका जा सकता है। इसके लिए बच्चों के अभिभावकों मे जागरूकता आवश्यक है। जनजागृति लाने में मीडिया अहम भूमिका निभा सकता है।

इग्नू के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. के.एस. तिवारी ने माना कि नियमित टीकाकरण के जरिए बचपन को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि टीकाकरण को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को खत्म कर जागृति लाई जाए। इसके लिए इग्नू व यूनिसेफ मिलकर बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकते हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के निदेशक डॉ. मनोहर अगनानी ने बताया कि मध्य प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति में और सुधार लाने की जरुरत है, क्योंकि देश में टीकाकरण 61 प्रतिशत है वहीं यहां सिर्फ 42 फीसदी बच्चों का ही नियमित टीकाकरण हो पाता है। इसके अलावा 54 प्रतिशत बच्चों को एक या दो टीके ही लग पाते हैं, वहीं पांच फीसदी बच्चों को कोई टीका नहीं लग पाता।
भोपाल व जबलपुर स्थित इग्नू के क्षेत्रीय कार्यालय के अलावा दिल्ली में मौजूद विशेषज्ञों ने टीकाकरण अभियान में मीडिया तथा खासकर क्षेत्रीय मीडिया की भूमिका पर खुलकर राय रखी।

Campaign to educate journos on immunization

New Delhi : In an effort to improve the media's reporting on immunization and spread awareness, Unicef and the Indira Gandhi National Open University (IGNOU) have launched a drive to educate grassroots level media professionals on the subject.
In a statement Friday, Unicef said: "Under the partnership with Unicef, IGNOU will provide its robust video-conferencing facilities to reach out to national, state and district media in strategic and interactive workshops on routine immunization."

The initiative was inaugurated simultaneously in Delhi, Bhopal and Jabalpur using the video-conferencing studios of IGNOU, it added.

In addition, there will be media workshops from June 2011 to February 2012, aiming at building a core network of media reporting on routine immunization. These will culminate in a national level congregation.

"In partnership with Unicef, IGNOU is committed to creating awareness among journalists so they can encourage and inform the public on important issues such as immunization and other developmental priorities," V.N. Rajasekharan Pillai, vice chancellor of IGNOU said.

A survey published by Unicef in 2009 stated that the single biggest reason behind India's low immunization coverage is that mothers do not feel the need to immunize their children (28.2 per cent), followed by a lack of knowledge about vaccines (26.3 per cent).

Media can play a vital role in disseminating info on immunisation: UNICEF

Jabalpur, Jul 30: A UNICEF official, in Jabalpur, said that the awareness about routine immunisation and its benefits among people can be done by Media effectively. She said that media plays an important role in this which will help in generating demand by communities on the issue of vaccination of children. “Mobilising media on this issue will help create a push on generating demand by communities and push within the system for vaccination of children. This is important as immunisation saves lives’ and important in a state which has highest infant mortality rates and a low routine immunisation level,” Dr Tania Goldner, Chief, UNICEF Madhya Pradesh told a group of journalists visiting Anganwadi centre near here recently.

We need to reach out to each and every child, she further stressed. A team of media persons from Delhi and Jabalpur had visited on July 26, Anganwadi Centre at Sarrai village about 30 kms away from Jabalpur as part of media partnership programme between UNICEF, Indira Gandhi National Open University (IGNOU) and Government of Madhya Pradesh to bring media on to its fold to help increase media discourse on routine immunisation.

Media representatives were informally interacting with community representatives and service providers, trying to understand from them how they work, what are their challenges, do all parents bring their children, if not how do they convince them? What do they do to make sure that vaccine remains potent even when the centre does not have electricity.

A UNICEF survey said that 42.9 percent children of Madhya Pradesh are fully vaccinated as per coverage evaluation survey done by it in the year 2009.

Mobilising media on routine immunization

Health News: Bhopal, July 29 (IBNS) Somati, is an anganwadi worker working at anganwadi centre (child care centre) loacted at Sarrai village, 30 kilometres 'north off Jabalpur town' in Madhya Pradesh, central part of India. This Tuesday she along with Auxiliary nurse midwives (ANM) and ASHA (accredited social health activists) were at the centre attending to rush of mothers who had come with their infants and little kids for vaccination.

As soon as one enters the centre, one could see vaccine vials on the molds of ice packs on the 'only table covered by white sheet' at the centre and on the other side mothers carrying vaccination cards in their hands and patiently waiting for their turn.

Few mothers had neatly wrapped vaccination cards of their children in a newspaper, while some had it in plastic bag.

But all of them had it.

Last Tuesday of every month, this centre functions as immunization centre for the village. And today was the vaccination day; all children whose vaccinations were due are being vaccinated by ANM. Anganwadi worker and ASHA mobilised parents to come to the centre and also attend to mothers and give them the needed iron tablets.

This Tuesday was a special one.

They had visitors.

The visitors were media representatives from Jabalpur, and Delhi. Mothers and children were being photographed, interviewed and were giving 'radio bytes'! It was not only this but more.

Media representatives were informally interacting with community representatives and service providers, trying to understand from them how they work, what are their challenges, do all parents bring their children, if not how do they convince them? What do they do to make sure that vaccine remains potent even when the centre does not have electricity etc.

Some of the villagers knew names of few newspapers, which they had read but some they had not even heard.

But today all of them were in the village and had come from Delhi and Jabalpur to see their work.

This is part of media partnership programme between UNICEF, Indira Gandhi National Open University (IGNOU) and Government of Madhya Pradesh to bring media on to its fold to help increase media discourse on routine immunisation.

'Mobilising media on this issue will help create a push on generating demand by communities and push within the system for vaccination of children.

This is important as ´immunization saves lives´ and important in state which has highest infant mortality rates and a low routine immunisation level' shares Dr Tania Goldner, Chief, UNICEF office for Madhya Pradesh.

"We need to reach out to each and every child," she further adds.

42.9 % children of Madhya Pradesh are full vaccinated in Madhya Pradesh as per coverage evaluation survey done in the year 2009 by UNICEF.

As a part of this media partnership programme an interactive and educative video conference was held simultaneously at Delhi, Bhopal and Jabalpur between media, officials of health department of Government of India and Government of Madhya Pradesh, UNICEF and IGNOU in June this year.

Preceding this media persons were taken to field in Bhopal in June and later in Jabalpur.

"The idea was to see the immunisation in the field, how vaccines are stored, transported, what is cold chain, how vaccine vial monitor helps to identify potency of vaccine in field, share the micro planning process, with them," says Dr Gagan Gupta, Health Specialist with UNICEF office for Madhya Pradesh.

He, along with Government of Madhya Pradesh health officials, walked media teams through the entire process of vaccine storage, micro planning process, to its distribution to community health centre, and to end point where children were being vaccinated at the health centre.

"Things are changing, people are getting aware of the immunization, but we need to expand our outreach and overcome barriers like low literacy levels, myths and superstitions. Hence need to reach out with information become more important and it is here where media and this partnership can play an important role," Dr J.L. Mishra, Joint Director Health, Jabalpur Division.

IGNOU, UNICEF partner to educate media on routine immunization

The Indira Gandhi National Open University (IGNOU), has tied up with UNICEF to educate grassroots level media professionals on routine immunization. IGNOU will provide its robust video-conferencing facilities to reach out to national, state and district media in strategic and interactive workshops on routine immunization. The initiative was inaugurated simultaneously in Delhi, Bhopal and Jabalpur using the video-conferencing studios of IGNOU.   

National media from IGNOU’s Gyan Darshan Delhi studio connected with over 80 state and district level media gathered at its Bhopal and Jabalpur centers.  Two additional media workshops are planned from June 2011 to February 2012, building a core network of media reporting on routine immunization. These will culminate in a national level congregation later this year.   

“In partnership with UNICEF, IGNOU is committed to creating awareness among journalists so they can encourage and inform the public on important issues such as immunization and other developmental priorities”, said Prof. V.N. Rajasekharan Pillai, Vice Chancellor, IGNOU.  

Speaking at the launch, David McLoughlin, Deputy Representative, UNICEF India, expressed his appreciation for the partnership between UNICEF and IGNOU and said that it would help improve the penetration of the routine immunization programme in the most remote areas through an effective network of informed journalists. “Through this partnership, we hope to ensure that all children can enjoy a healthy life, no matter what their socio-economic background,” he said.   While welcoming the guests, Professor Shambhu Nath Singh, Director, School of Journalism & New Media Studies (SOJNMS), IGNOU, said that this effort involves an innovative use of technology to train grassroots journalists in India.   

Sharing data with media, Dr. N.K Dhamija, Assistant Commissioner Immunization, Ministry of Family & Health Welfare, pointed out,"Besides making people aware of the immunization schedule and benefits of the vaccination, media can also inform people about cold chain and its role in effective immunisation," Dr. Dhamija added. He also informed that Government of India, besides providing vaccination against six vaccine preventable diseases (VPDs) Universal ( Routine )  Immunisation Programme, has added vaccination against Hepatitis-B across the country and Second Dose of Measles Vaccine under Universal Immunsiation Programme.    

During the launch, Shravan Garg, Group Editor, Dainik Bhaskar urged the journalists present to focus on child deaths caused by the lack of vaccination. He suggested that completed immunization cards should be made compulsory for admission in schools, for every child.    

At the end of the launch event in Delhi, UNICEF’s booklet on “Adolescence: An Age of Opportunity” was released by David McLoughlin, Deputy Representative, UNICEF India. Angela Walker, Chief of Advocacy & Partnerships, UNICEF India, explained how the booklet tells the stories of empowered rural and urban adolescents making a big difference in their own communities.