Monday, August 22, 2011

मप्र पर भारी बालाघाट जिला - टीकाकरण में बालाघाट ने सभी को पीछे छोड़ा

75 फीसदी बच्चों को लगाए जाते हैं सभी टीके

- पंकज शुक्ला

भोपाल। नक्सलियों के चलते प्रदेश सरकार के लिए 'सिरदर्द" बना बालाघाट जिला बच्चों के टीकाकरण के मामले में पूरे प्रदेश पर भारी पड़ रहा है। लाख प्रयत्नों के बाद भी प्रदेश में पूर्ण टीकाकरण की दर 43 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पा रही है जबकि आदिवासी जिले बालाघाट में पूर्ण टीकाकरण की दर 75 प्रतिशत है। खसरे का टीका लगाने में जहाँ अन्य जिले पिछड़ रहे हैं, वहीं बालाघाट में 90 फीसदी बच्चों को यह टीका लगाया जा चुका है। पिछड़े और नक्सल समस्या वाले जिले की पहचान पा चुके बालाघाट का यह नया परिचय चौंका रहा है। देश भर के विशेषज्ञ और टीकाकरण हिमायती इस सफलता के कारण खोजने में लगे हैं ताकि बालाघाट को 'फार्मूला" बना कर बच्चों की सेहत सुध्ाारी जा सके।

बच्चों की असमय होने वाली मौत को रोकने के लिए मध्यप्रदेश में पूर्ण टीकाकरण बड़ी चुनौती बना हुआ है। देश में हर साल एक लाख 80 हजार बच्चे केवल खसरे की बीमारी की वजह से मर जाते हैं। इन मौतों में मप्र का हिस्सा आठ से 10 फीसदी है। टीकाकरण खसरे से बचाव का कारगर उपाय हो सकता है। खसरे से बचाव के शिशु को 9 माह की उम्र में टीका लगाया जाता है। खसरा श्वसन तंत्र का एक घातक व बेहद संक्रामक रोग है। जिन शिशुओं को खसरा का संक्रमण होता हैं उनमें से बहुत से शिशुओं को सीने का संक्रमण, दौरे व दिमागी क्षति सरीखे कई गंभीर नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।  मप्र में खसरा टीकाकरण की बात करें तो कुल 57.7 प्रतिशत बच्चों को ही खसरा से बचाव के लिए जरूरी टीके लग पाए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण किए हुए बच्चे महज 53.6 प्रतिशत ही हैं।

पूर्ण टीकाकरण की स्थिति कुछ ओर हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार 2007-08 में 62.5 प्रतिशत, 2007-08 में 62.5 प्रतिशत तथा 2008-09 में 63.6 प्रतिशत बच्चों को बाल टीकाकरण योजना के तहत पूरी तरह रोग प्रतिरोधी टीकाकरण किया गया। जनसंख्या शोध केंद्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने मध्यप्रदेश के बच्चों के टीकाकरण के संदर्भ में एक शोध रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार 12 से 36 माह की आयु के बच्चों में से केवल 47 फीसदी बच्चों का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। तब के 45 जिलोें में से 3 जिलों में 75-100 फीसदी, 21 जिलों में 50-74 फीसदी, 17 में 25-49 फीसदी और 4 जिलों में 0-24 फीसदी तक टीकाकरण हुआ है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा करवाए जाने वाले सर्वे डीएलएचएस-3 (डिस्ट्रीक लेवल हाऊस होल्ड सर्वे-3) के मुताबिक बालाघाट में 75  फीसदी बच्चों का पूर्ण टीकाकरण हुआ है। यहाँ जन्में 90 फीसदी बच्चों को खसरे का टीका लगाया गया। जबकि झाबुआ, अलीराजपुर, शिवपुरी, टीकमगढ़, बड़वानी जैसे जिलों में 30 फीसदी बच्चों को भी खसरे का टीका नहीं  लग पाता है। पन्नाा में केवल 11 फीसदी बच्चे ही टीकाकरण का लाभ उठा पाए हैं।

तमाम विपरित परिस्थितियों के बाद भी बालाघाट जिले का यह प्रदर्शन पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य पाने की उम्मीद जगाता है। बालाघाट में इस लक्ष्य को पाने के लिए बहुत बड़ा काम न कर छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दे कर बड़ा लक्ष्य पाया गया है। मसलन, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम के बाद आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दे कर पूरी तरह टीकाकरण के लिए तैयार किया गया। उनकी समस्या सुनी गई और उनका निराकरण हुआ। दूसरा, हर स्तर पर निगरानी को कड़ा किया गया। अंतिम चरण में गाँवों में घर-घर जा कर बच्चों को खोज कर टीके लगाए गए। यह कैच अप राउंड कारगर साबित हुआ। जिला टीकाकरण अध्ािकारी डॉ. राकेश पंड्या कहते हैं कि इन तीन स्तरों पर की गई कोशिशों ने हमारा हौंसला बढ़ाया।

बस्ती-बस्ती की माइक्रो प्लानिंग, बच्चे-बच्चे पर नजर

सम्पूर्ण टीकाकरण की ओर कदम बढ़ाते हुए यहाँ कुछ ऐसा नहीं किया गया जो अन्य जिलों में न किया जा सकता हो। जिले को यह उपलब्ध्ाि सामान्य काम को विशिष्ट तरीके से करने पर मिली है। यहाँ हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभा रहा है। बस्ती के अनुसार माइक्रो प्लानिंग की गई और बच्चे-बच्चे पर नजर रखी गई। इस तरह निगरानी का एक ऐसा तंत्र बना जो हर कमी को पकड़ने में सक्षम है।

महिला एवं बाल विकास विभाग अध्ािकारी नीलिमा तिवारी के मुताबिक टीकाकरण का लक्ष्य हो या कुपोषण या बाल संजीवनी अभियान, हमने इसे अलग-अलग काम मानने की जगह आपसी सहयोग का प्रोजेक्ट बनाया। स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक-दूसरे की जानकारियों और सूचनाओं को साझा किया और उनका उपयोग करना शुरू किया। मसलन, आँगनवाड़ी केन्द्र में आने वाली महिलाओं से गाँव में गर्भवती महिला की जानकारी मिलने पर तुरंत आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम को बता दिया जाता है। वे अपने-अपने रजिस्टर में गर्भवती महिला का नाम-पता दर्ज कर लेते हैं। इसके बाद आँगनवाड़ी सहायिका, कार्यकर्ता, एएनएम और आशा की जिम्मेदारी है कि समय पर गर्भवती महिला की नियमित जाँच, टीकाकरण, संस्थागत प्रसव और बच्चों के टीकाकरण का ध्यान रखे।

चूके टोलो में हल्ला बोल बालाघाट पहाड़ी जिला है और यहाँ के दूरस्थ इलाकों में पहुँचना टेढ़ खीर है। शहर से सटे इलाकों में तो टीकाकरण आसान है लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों से बच्चों को टीकारण के लिए नहीं लाया जाता। बालाघाट में बिरसा, बैहयर, परसवाड़ा, लांजी तथा लामटा के छह गाँव ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सहज आवाजाही नहीं हो सकती। जिला टीकाकरण अध्ािकारी डॉ राकेश पंड्या बताते हैं कि दूरस्थ क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए खास मुहिम चलाई जाती है। यह मुहिम उन माह में होती है जब पलायन कर गए लोग अपने घर आते है। मसलन, होली, फसल कटाई और फसल बुआई के समय। इस दौरान पहले दिन स्थानीय व्यक्ति  से मुनादी करवा कर सूचना दी जाती है। अगले दिन 2 या 3 गाड़ियों में सात-सात कर्मचारियों का दल एक-एक टोले में पहुँचता है। वहाँ घर-घर जा कर गर्भवती महिलाओं की जानकारी लेते हैं, उन्हें टिटनेस का टीका लगाती है और बच्चे के जन्म का आकलन कर आशा कार्यकर्ता या आँगनवाड़ी सहायिका को संस्थागत प्रसव के लिए तैनात कर दिया जाता है। घर-घर जा कर यह पूछ भी लिया जाता है कि किसके घर में बच्चा है। इसतरह सूचना जुटाई जाती है। यह कैचअप राउंड सालभर में चार बार किया जाता है। इस अभियान के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से अलग बजट आवंटित है।

'टीका लगाना था इसलिए नहीं गई खेत" मगरदर्रा की आँगनवाड़ी में अपनी तीन माह की बेटी को टीका लगवाने लाई कौशल्या अनुसूचित जाति वर्ग है। गरीब परिवार की बहू कौशल्या कमाई के लिए खेत पर काम करने जाती है। इनदिनों ध्ाान की कटाई का काम चल रहा है करीब सौ रूपए रोज कमाने वाली कौशल्या अपने टोले की एक और महिला के साथ टीका लगवाने आई। उनसे जब पूछा गया कि काम पर क्यों नहीं गईं तो वे कहती हैं कि बच्ची को टीका लगवाना ज्यादा जरूरी है। टीका लगवाना जरूरी है यह किसने कहाँ, पूछने पर वे आँगनवाड़ी सहायिका की ओर इशारा कर देती हैं।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता केके यादव कहतेे हैं कि बच्चा बीमार होता है तो लोग लेकर तुरंत आ जाते हैं। कुपोषण पर वे जिला मुख्यालय में पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) में भी भर्ती करते हैं। श्री यादव का कहा एनआरसी में भ्रमण के दौरान सच लगा। यहाँ 19 बच्चों को पोषण के लिए भर्ती करवाया गया था। ग्रामीणों की जागरूकता ही परिणाम था कि तुमड़ीटोला की आँगनवाड़ी में दोपहर तीन बजे तक लक्ष्य के सभी बच्चों को टीके लग चुके थे। केवल एक गर्भवती महिला का आना शेष था और सभी उसका इंतजार कर रहे थे। नहीं आई तो? इस पर आँगनवाड़ी सहायिका ने कहा कि वह तीसरी बार बुलाने जाएगी। जब कोई इतना पीछे पड़ जाए तो टीका लगवाने आना तो पड़ेगा ही।

 (नईदुनिया समूह के संस्करण 'संडे नईदुनिया" में प्रकाशित)

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