- Ankita Mishra, L N Star
टीकाकरण बच्चों को रोगों से लड़ने की क्षमता तो प्रदान करता ही है, साथ ही ऐसी बीमारियों की चपेट में आने से भी बचाता है, जो हवा और पानी के संपर्क मात्र से फैलती हैं। जन्म से लेकर किशोरावस्था तक लगने वाले प्रमुख टीके उसकी जिंदगी को खुशहाल बनाने और स्वस्थ्य जीवन देने का काम करते हैं। इसलिए नियमित और समयानुसार टीकाकरण जरूर कराएं।
तपेदिक टी.बी. - तपेदिक यानि टी.बी. एक जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूली) के संक्रमण के कारण होता है। यह अत्यंत संक्रामक रोग है जिसमें मुख्यत: फेफडे प्रभावित होते हैं। इसका असर आंतों, हड्डियों, जोड़ों, लसीका ग्रंथियों, ऊतकों और शरीर के तंतुओं पर भी पड़ सकता है। टी.बी. की स्थिति यदि गंभीर हो जाए तो मौत भी हो सकती है।
तपेदिक टी.बी. - तपेदिक यानि टी.बी. एक जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूली) के संक्रमण के कारण होता है। यह अत्यंत संक्रामक रोग है जिसमें मुख्यत: फेफडे प्रभावित होते हैं। इसका असर आंतों, हड्डियों, जोड़ों, लसीका ग्रंथियों, ऊतकों और शरीर के तंतुओं पर भी पड़ सकता है। टी.बी. की स्थिति यदि गंभीर हो जाए तो मौत भी हो सकती है।
पहचान - बच्चा बीमार रहे। उसे 2 सप्ताह से अधिक बुखार या खांसी हो, वजन कम होने लगे। शरीर में सुस्ती रहे। इन सभी लक्षणों को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। चिकित्सक से परामर्श लें।
फैलाव -फेफडे सम्बंधी टी.बी. से पीड़ित व्यक्ति की खांसी या छींक के कणों के संपर्क में आने से संक्रमण हो सकता है। इसका अन्य प्रकार (बोवाईन टी.बी.) जो पशुओं का कच्चा दूध पीने से होता है।
रोकथाम- यदि बच्चे को बैसिलस कालमेट ग्यूरिन (बीसीजी) का टीका बचपन में लगवाया है तो टी. बी. के गंभीर रूपों की रोकथाम कर सकता है।
पोलियो
पोलियो एक वायरल संक्रमण है जिससे नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और गंभीर बीमारियां, जैसे- लकवा और मौत तक हो सकती है। सघन पल्स पोलियो अभियान आयोजित होने के कारण वर्ष 1999 के बाद देश में पोलियो से पीड़ित बच्चों की संख्या में अच्छी खासी गिरावट आई है। राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण अभियान से सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
पहचान - 15 वर्ष की आयु तक के बच्चों में शरीर के किसी भी भाग में अचानक कमजोरी और लकवे के लक्षण या किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति में जिसमें पोलियो की संभावना हो सकती है। नियमित टीकाकरण कराएं।
फैलाव - संक्रमण मल के संपर्क में आने से फैलता है। सफाई में कमी, अप्रत्यक्ष रूप से दूषित पानी, दूध या भोजन के कारण भी होता है। 80 प्रतिशत से भी अधिक पोलियो के मामले 3 साल से कम उम्र के बच्चों में पाए जाते हंै।
रोकथाम - मुंह से पिलाई जाने वाली पोलियो वैक्सीन यानि ओ.पी.वी. ही खतरनाक बीमारी की रोकथाम का एकमात्र असरकारक तरीका है।
गल घोंटू
डिप्थीरिया यानि गल घोंटू एक जीवाणु (कोराइन बैक्टीरियम डिप्थीरिया) के संक्रमण से होने वाला रोग है। डिप्थीरिया एक ऐसा संक्रामक रोग है जो टॉन्सिल व श्वांसनली को संक्रमित करता है जिससे एक ऐसी झिल्ली बन जाती है जो सांस लेने में रुकावट पैदा करती है और जिससे मौत भी हो सकती है।
पहचान - गले में खराश रहती है। इतना ही नहीं शरीर में हल्का बुखार भी रहता है। इसके अलावा गले में स्लेटी रंग का धब्बा या धब्बे बन जाते हैं।
फैलाव - इसके जीवाणु पीड़ित व्यक्ति के मुंह, नाक और गले में रहते हंै। यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से फैलता है।
रोकथाम - यदि टीका नहीं लगाया गया तो बच्चे को 14 साल तक की उम्र में इसका संक्रमण बार-बार हो सकता है।
काली खांसी
काली खांसी एक जीवाणु बोर्डेटेला परट्यूसिस के संक्रमण से होने वाला अति संवेदनशील संक्रामक रोग है जो तेजी से फैलता है। इसमें श्वांस प्रणाली प्रभावित होती है जिसके कारण बार-बार खांसी होने लगती है। कुछ गंभीर मामलों में तो इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की घुटन से मौत भी हो सकती है।
पहचान - उग्र खांसी आती है। दो हफ्ते के बाद इन पर भी गौर कर सकते हैं। खांसी के दौरे, साथ में उल्टी, बड़े बच्चों में खांसी व हूहू की आवाज आती है।
फैलाव - इसके जीवाणु रोगी के मुंह और नाक में मौजूद रहते हैं। आमतौर पर खांसी और छींक के जरिए वे हवा में फैल जाते हैं। बच्चे इसकी चपेट में जल्दी आ जाते हैं।
रोकथाम - डी.पी.टी. का टीका ही काली खांसी का उपाय है। बच्चे का 6, 10, 14 सप्ताह में टीकाकरण कराएं।
हेपेटाइटिस-बी
हेपेटाइटिस-बी अत्यंत संक्रामक (एच.आई.वी.से 40-100 गुना ज्यादा संक्रामक) वायरल रोग है जिससे पीलिया व अचानक तेजी से बढ़ने वाला लीवर रोग, सिरोसिस (सूत्रण रोग) और लीवर कैंसर भी हो सकता है।
पहचान - प्रमुख लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मिचली, उल्टी, पीलिया (आंखें पीली) व मल का रंग राख जैसा होना शामिल है। अंतिम रूप से पुष्टि प्रयोगशाला जांच में चलती है।
फैलाव - संक्रमित रक्त या शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों के जरिए फैलता है। बच्चे के जन्म के समय असुरक्षित यौन संबंध, बगैर स्टरलाइज किए ही सुइयों के इस्तेमाल करने से फैलता है।
रोकथाम -टीकाकरण नियमावली के अनुसार, हेपेटाइटिस-बी के द्वारा रोग के संक्रमण और जटिलता की रोकथाम संभव है। शिशु का 6, 10, 14 टीकाकरण कराएं।
टेटनस
यह जीवाणु जनित रोग है। नवजात में होने वाली टेटनस व्यस्कों की टेटनस बिल्कुल अलग है। नियाटेल टेटनस से यानि नवजात शिशुओं में होने वाले टेटनस से प्रभावित बच्चे जीवन के दो दिनों में सामान्य रूप से स्तनपान करते हैं और रोते हैं। इसकी पहचान तुरंत करें तो ठीक रहता है।
पहचान - 3-28 दिनों के बीच शिशु को स्तनपान में दिक्कत होती है और इसके बाद गर्दन व शरीर अकड़ने लगता है और मांसपेशियां ऐंठने लगती हैं। ऐसे में देर न करें।
फैलाव - गंदगी, आंतों व पशुओं के मल में रहता है। कटी-फटी त्वचा के जरिए शरीर में पहुंचता है। नवजात में कटी त्वचा, घाव या नाभिनाल से प्रवेश करता है।
रोकथाम -टीका ही असरदार तरीका है। इसका टीका शिशु को 1 से 4 सप्ताह के भीतर लगवा देना चाहिए। यही शिशु की जान बचा सकता है।
खसरा
विषाणु से होने वाला अत्यंत संक्रामक रोग है। यह विषाणÞु रोगी व्यक्ति के नाक, मुंह या गले में पाया जाता है। संक्रमित को बुखार खांसी हो सकती है और पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं जिससे दस्त एवं निमोनिया जैसे माध्यमिक संक्रमणों के कारण मौत भी हो सकती है।
पहचान - मेशा बुखार रहना। इसके साथ-साथ ही शरीर पर दाने निकल आना, खांसी या नाक से पानी बहना और आंखें लाल होना प्रमुख लक्षणों में से एक हैं।
फैलाव - इसका विषाणु पीड़ित व्यक्तियों के द्वारा खांसी व छींक से हवा में फैलता है। इससे निकलने वाले कणों के माध्यम से संक्रमण फैलता है। शिशु को ऐसे व्यक्ति से दूर रखें।
रोकथाम - खसरे की रोकथाम के लिए सबसे असरकारक तरीका टीका है। बच्चे को टीकाकरण नियमानुसार 16-24 सप्ताह में लगवा लें।
जापानी एन्सीफैलाइटिस (जेई)
जापानी एन्सीफैलाइटिस भी अन्य प्राणघातक रोगों की तरह ही विषाणु जनित जानलेवा रोग है। यह भारत के कुछ राज्यों के किन्हीं निश्चित क्षेत्रों में पाया जाता है।
पहचान - इस रोग के दौरान प्रभावित को तेज बुखार के साथ-साथ मानसिक स्थिति में परिवर्तन (जैसे भ्रम,भटकाव या कोमा के रूप में), कंपन होने की स्थिति देखने को मिलती है।
फैलाव - इसका विषाणु आमतौर पर पक्षियों एवं घरेलू जानवरों, विशेषकर सुअर में रहता है। संक्रमित जानवरों को काटने वाले मच्छर जब बच्चों को काटते हैं तब उन बच्चों में यह रोग हो जाता है।
रोकथाम - इस रोग पर काबू पाने के लिए अधिक जोखिम वाले जिलों में 1-15 वर्ष तक के सभी बच्चों को लक्षित अभियानों के अन्तर्गत टीकाकरण किया जाता है। उसके बाद इस टीके को जिले के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। 1-2 वर्ष तक के बच्चों के लिए जापानी एन्सीफैलाइटिस की रोकथाम सम्बंधी एक खुराक उपलब्ध कराई गई है।
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फैक्ट फाइल
2009 में यूनिसेफ द्वारा कराए गए कवरेज इवोल्यूशन सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 12-23 माह के बच्चों की टीकाकरण की स्थिति को बताया गया है। नियमित टीकाकरण को लेकर यदि प्रत्येक राज्य की स्थिति देखें तो कुछ इस प्रकार है। नियमित टीकाकरण के मामले में, दिल्ली, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, पं. बंगाल, मेघालय, झारखंड, उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान और मणिपुर की स्थिति मप्र से अच्छी है।
राज्य पूर्ण इम्यूनाइजेशन आंशिक इम्यूनाइजेशन नो इम्यूनाइजेशन
गोवा 89 8 3
सिक्किम 85 12 3
पंजाब 84 15 1
केरल 82 17 1
महाराष्ट्र 79 20 1
कर्नाटक 79 20.5 .5
तमिलनाडु 78 18 4
हिमांचल प्रदेश 5 24.77 .23
मिजोरम 73 19 8
बिहार 49 35 16
मप्र 42.9 50 7.1
उप्र 40 42 18
अरुणाचल प्रदेश 8 40 32
- प्रतिदिन भारत में 5000 बच्चे पांच वर्ष की आयु के पहले ही दम तोड़ देते हैं।
- 12000 बच्चे प्रति वर्ष मीजल्स के कारण दम तोड़ देते हैं।
- अभी तक मध्य प्रदेश में 41 फीसदी बच्चों को ही नियमित टीकाकरण के दायरे में लाया जा
सका है।
- 100 फीसदी टीकाकरण करना अभी भी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है।
जागरुकता की कमी
आजादी के इतने सालों बाद भी नियमित टीकाकरण की स्थिति में कोई आश्चर्यजनक सुधार नहीं देखा गया है। स्थिति अभी भी जस की तस बनी हुई है। मप्र यूनिसेफ की हेड डॉ. तानिया गोल्डर बताती हैं कि देश में टीकाकरण की स्थिति 60 फीसदी है तो मप्र में 41 फीसदी है, जो चिंता का विषय है। इसे 100 फीसदी पर लाने के लिए सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को निजी तौर पर प्रयास तेज करने होंगे। लोगों की सहभागिता को बढ़ाना होगा। इसके लिए उनमें जागरुकता के स्तर को भी बढ़ाना होगा। तभी हर बच्चे का टीकाकरण हो सकेगा। देश में प्रत्येक वर्ष 2700 मिलियन बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाता है। मप्र की टीकाकरण स्थिति को लेकर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक मनोहर अगनानी का कहना है कि माइक्रोप्लान्स के जरिए स्थिति को काबू करने की कोशिश की जा रही है।
ये है स्थिति
सही समय पर टीकाकरण नहीं पाने के कारण सिर्फ मप्र में ही 12 हजार बच्चे सालाना मीजल्स के कारण काल कवलित हो जाते हैं। इसकी वजह से देश में 6 फीसदी बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। पूरे देश में मीजल्स के टीकाकरण की स्थिति 74.1 प्रतिशत है। इतना ही नहीं 50.6 फीसदी बच्चों को ही डीपीटी-3 वैक्सीन की खुराक मिल पाती है। पूरे देश में 61.0 प्रतिशत बच्चों को ही टीकाकरण की पूरी खुराक मिल पाती है। प्रदेश में ऐसे बच्चों की संख्या महज 42.9 प्रतिशत है, जिन्हें टीकों की फुल डोज मिल पाती है। डीटीपी बूस्टर डोस प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या मात्र 29.8 फीसदी ही है। वहीं विटामिन ए की पहली डोज लेने वाले बच्चों की संख्या 45.1 फीसदी है। इसका प्रमुख कारण लोगों में जागरुकता का अभाव है।
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